सागर के किनारे / मख़दूम मोहिउद्दीन
मन्दिर में पुजारी लगे नाक़ूस<ref>शंख</ref> बजाने
वो उनके भजन प्यारे वो गीत उनके सुहाने ।
तारीकिए शब ओढ़ के रुख़सत<ref>विदा होना</ref> हुआ इसियाँ<ref>पाप</ref>
तक़दीस<ref>पवित्रता, श्रेष्ठता</ref> के जारी हुए हर सिम्त<ref>ओर</ref> तराने ।
वो छाँव में तारों की वो खेतों के किनारे
दहक़ान<ref>किसान</ref> भी भैरों की लगा तान उड़ाने ।
कोयल ने किसी कुंज से कू-कू की सदा दी
मुरग़ाने चमन<ref>उपवन के पक्षी</ref> गाने लगे सुबह के गाने ।
अंगड़ाइयाँ लेता हुआ तूफ़ान-ए-जवानी
मलता हुआ आँखें उठा फ़ितनों<ref>उपद्रव</ref> को जगाने ।
कुछ लड़कियाँ आँचल को समेटे हुए बर में<ref>ऊपर की ओर</ref>
गगरी लिए सर पर चलीं पानी के बहाने ।
अंगुश्तरियए हुस्न<ref>पूर्ण सौन्दर्य</ref> के अनमोल नगीने
सर चश्मे<ref>स्रोत</ref> मुहब्बत के मसर्रत<ref>आनन्द</ref> के ख़ज़ाने ।
चलती हैं इस अन्दाज़ से दामन को संभाले
सदक़े हुई शोख़ी तो बलाएँ ली अदा ने ।
पानी मेम लगी आग परेशान है मछली
कुछ शोलाबदन उतरे हैं पानी में नहाने ।
चेहरों को कभी शर्म से आँचल में छुपाना
गह खेलना पानी से वो झेंप अपनी मिटाने ।
तालाब पे अफ़्लाक<ref>आसमान</ref> के गुमगश्ता<ref>खोए हुए</ref> सितारे,
आते हैं सुबह होते ही सागर के किनारे ।