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सागर मुद्रा - 13 / अज्ञेय

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 ओ सागर
ओ मेरी धमनियों की आग,
मेरे लहू के स्पन्दित राज-रोग,
सागर

ओ महाकाल
ओ जीवन
दिग्विहीन आगम,

प्रत्यागम निरायाम,
द्वारहीन
निर्गमन,
सागर, ओ जीवन-लय, ओ स्पन्द!

ओ सदा सुने जाते मौन,
ओ कभी न सुने गये विराट् विस्फोट
निःशेष :
ओ मेघ, ओ ज्वार, ओ बीज,

ओ विदाध, ओ रावण, ओ कीट-दंश!
ओ रविचुम्बी गरुड़, ओ हारिल,
ओ आँगन के नृत्य-रत मयूर!
ओ अहल्या के राम,

ओ सागर!
लहर पर लहर पर लहर पर लहर...

फरवरी, 1971