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सागर से भी गहरा है / कैलाश झा 'किंकर'
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सागर से भी गहरा है
तब तो प्यार पर पहरा है।
चारों ओर मुहब्बत से
मौसम बड़ा सुनहरा है।
तन्हाई है, आँसू हैं
प्यार के हिस्से सहरा है।
खुशियाँ भरने को यारो
होली-ईद-दशहरा है।
सुस्ताने को मंज़िल पर
प्यार भी लगता ठहरा है।
वक़्त सुनाता है सबको
जो न सुना वह बहरा है।