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सागर / सुरेश बरनवाल
Kavita Kosh से
मैंने जब-जब सागर को देखा
वह विस्तार करता गया
और महासागर बन गया।
मैंने जब-जब सागर से आंखें धोईं
वह खारा होता गया
और नमक हो गया।
मैंने जब-जब सागर को दिखाया
अपने घर की छत पर
चिड़ियों के लिए रखा
कटोरी में थोड़ा सा जल
सागर पानी-पानी हो गया।