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सागर / सुशीला सुक्खु
Kavita Kosh से
समुद्र कहूँ या सागर
जल का तू है गागर
पाकर जल अपार
करें न कभी अहंकार
तेरे में आवे न कभी बाढ़
न घटे न बढ़े तेरा जलधार
तेरा क्या कहना
मर्यादा में सदा है बने रहना
महत्व भरा यह सन्देश
इन्सानों में कर देना प्रवेश
सागर कहूँ या रत्नेश।