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सागौन / पूनम वासम

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सागौन के वृक्ष बस्तर भूमि पर उग आए
दो मज़बूत हाथ हैं
जिनकी हथेलियों पर
लिखा भूमकाल का विद्रोह
धीरे-धीरे दम तोड़ रहा है ।

सागौन की चौड़ी पत्तियाँ समेटना चाहती हैं
जल, जंगल, ज़मीन की दुनिया
अपने रेशों में
टहनियों में बान्धकर लाल मिर्च
बनाना चाहती हैं
डारामिरी सा कोई प्रतीक-चिह्न
चूस कर छोड़ दी गई हरियल छाती के लिए ।

सागौन की मोटी जड़ें भीतर ही भीतर
जमा कर रही हैं दर्द का मवाद
गीली मिट्टी की नमी में
आँसू छुपाती सुबक रही जड़ें
अब लिखना चाहती हैं
उपेक्षा का एक पूरा का पूरा इतिहास ।

सागौन के दोनों हाथ चाहते हैं एक बार फिर
शोषण के खिलाफ़ लामबन्द होना
एक बार फिर चाहते हैं
अपनी इस धरती पर
गुण्डाधुर जैसा
कोई नन्हा बीज बोना ।