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साच! / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
जिनगानी री
साच
भूख,
ठुंगार
धाप्योड़ां री
जात पांत
छुआछुत,
हुयो सेस
जद जुद्ध
महाभारत रो
खोल’र
आंख्यां री पाटी
रोती कळपती
गन्धारी
पूगगी कुरूखेत में
सोधती लाषां
जायोड़ां री,
थक’र हुगी निढाळ
मौत रै जंगळ में,
लागगी भूख
जाणै पड़ ज्यासी काया,
दीख्यो सामूं
लड़ालूम
आंबै रो रूंख
जा’र कनैं
हुई
पंज्या रै पाण
पसार्यो हाथ
पण कोनी
नावड़ी फळ,
जणाँ ल्याई घींस’र
एक मुरदो
ऊभ’र बीं पर
तोड़ लियो आम
हुई खा’र तिरपत
राणी,
आ कोनी कोरी का’णी
कैबत साची
भूख हुवै स्याणी !