भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साची कहो मनमोहन मोसों तो खेलों तुम संग होरी / सूरदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साची कहो मनमोहन मोसों तो खेलों तुम संग होरी ।
आज की रेन कहा रहे मोहन कहां करी बरजोरी ॥१॥
मुख पर पीक पीठिपर कंकन हिये हार बिन डोरि ।
जिय में ओर उपर कछु औरे चाल चलत अछु औरि ॥२॥
मोहि बतावति मोहन नागर कहा मोहि जानत भोरी ।
भोर भये आये हो मोहन बात कहति कछु जोरी ॥३॥
सूरदास प्रभु ऐसी न कीजे आय मिलो कहा चोरी ।
मन माने त्यों करति नंदसुत अब आई है होरी ॥४॥