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साच-झूठ / कन्हैया लाल सेठिया
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मान’र निराकार
गिगनार नै तंबू
तू ठोक दिया
दिसावां रा खूंटा,
न कदेई उगै
न कदेई आंथै सूरज
पण कोनी मानै ईं साच नै
परतख स्यूं जुड़योड़ी दीठ,
कोनी हुवै कदेई काळ
भूत’र भविस
बो तो सासतो वरतमान
पण तू घटनावां स्यूं पोखै
थारो भरम !