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साच (02) / कन्हैया लाल सेठिया
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झरतो पानड़ो
कयो पानडा़ं
आही हुवै ली
थांरी गत,
कर दियो साव नागो
रूंख नै पतझड़
पण रया कांटा
आपरी जग्यां सर,
झरै बै, हुवै जकां में
रस रो परिपाक
आ परतख दीखती मोटी साच !