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साज़े-दिल पर कोई नग़्मा ही सुनाते रहिए / शैलेश ज़ैदी
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साज़े-दिल पर कोई नग़्मा ही सुनाते रहिए।
अपने होने का कुछ एहसास दिलाते रहिए॥
अपनी ख़ातिर न सही मेरी तसल्ली के लिए।
जैसे आते थे उसी तर्ह से आते रहिए॥
रंजिशें हों भी तो ग़ैरों पे न ज़ाहिर कीजे।
रस्मे-दुनिया ही सही साथ निभाते रहिए॥
ना उमीदी को कभी पास न आने दीजे।
शमएँ जब गुल हों नयी शमएँ जलाते रहिए॥
खूबसूरत है बहुत देखिए तस्वीरे - हयात।
शर्त इतनी है कि कुछ ख़्वाब सजाते रहिए॥
बज़ेमे अहबाब में पलकों की नमी क्या मानी।
ग़म उठाने के लिए हँसते-हँसाते रहिए॥
कुछ तो रखना है बहरहाल वफ़ाओं का भरम
आते-जाते कभी बस मिलते-मिलाते रहिए॥