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साज़ बजता भी है, आवाज़ नहीं होती है / गुलाब खंडेलवाल
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साज़ बजता भी है, आवाज़ नहीं होती है
पर ये चुप्पी भी बिना राज़ नहीं होती है
हम उन्हें अपना तड़पना भी दिखायें कैसे!
दिल जो टूटे भी तो आवाज़ नहीं होती है
दिल न काँटों से बिँधा हो तो ग़ज़ल ऐसी गुलाब
लाख कहने का हो अंदाज़, नहीं होती है