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साजि लेल्हाँ डालबा, नेसी लेल्हाँ दीप / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

डाला लेकर गौरी की माँ अपने दामाद का परिछन करने चली। मन-ही-मन गौरी की अबोधता और सुकुमारता को सोचती रही। इसी सोच में डाला गिर जाने के कारण दीप बुझ जाता है और वह अपने दामाद को ठीक से देख भी नहीं पाती।

साजि लेल्हाँ डालबा, नेसी लेल्हाँ दीप।
चलह से मलाइनि<ref>गौरी की माँ</ref> देखे, जमैया केरअ हे रूप।
अबोधी<ref>अबोध</ref> मोरा गौरी, सुनरी मोरा गौरी॥1॥
ठेसी<ref>ठोकर खा गया</ref> गेल हे डालबा, मिहाई<ref>बुझ गया</ref> गेल हे दीप।
देखेउ ना भेलै, जमैया केरअ हे रूप॥2॥

शब्दार्थ
<references/>