भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साठ के बाद धीरे-धीरे सरकते हैं साल / विजय सिंह नाहटा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साठ के बाद धीरे-धीरे सरकते हैं साल
जैसे लोकल गाड़ी के चरमराते डिब्बे
खिसकते नींद में डूबे से
साठ के बाद थिर-सी हो जाती दुनिया की तमाम घड़ियाँ
साठ के बाद चुप्पी साधे रहते शोर के तूफान: कोहराम रहित सी दुनिया नये कल के लिए
साठ के बाद प्रक्रियाएँ लगभग मौन
महज, निष्पत्तियों पर दार्शनिक चुप्पी में बातचीत
साठ के बाद गाढा हो जाता जीवन के लिए हमारा नज़रिया: लगभग ठोस
साठ के बाद गोया धीमे-धीमे आता है अवसान
साठ के बाद हर क्षण में गुथ जाती अनंतानंत सहस्राब्दियाँ
वैसे हो सकता किसी वक़्त सामना
पर, साठ के बाद तय है किसी मोड़ पर मुठभेड़
साठ के बाद धीमे-धीमे सरकता आदमी उत्सर्ग की ओर
साठ के बाद बेहद नज़दीक से करता आदमी आचमन निथरे हुए जीवन मर्म का
साठ के बाद छोड़ देता हरसंभव ज़मीन नयी कोंपल के हक़ में
साठ के बाद आदमी न निम्नलिखित होता न उपर्युक्त
साठ के बाद न शुरुआत न अंत
महज़ उपसंहार।