साढ़ जे मास सुहावणा सुआ रे / हरियाणवी
साढ़ जे मास सुहावणा सुआ रे
जै घर होता हर का लाल मैं हाली खंदावती
सामण जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर का लाल मैं हिंदो घलावती
भाद्ड़ा जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर लाल मैं गूगा मनावती
असौज जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर का लाल मैं पितर समोखती
कातक जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर का लाल मैं दिवाली मनावती
मंगसर जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर का लाल मैं सौड़ भरवाती
पोह जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर का लाल मैं संकरात मनावती
माह जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर का लाल मैं बसन्त मनावती
फागण जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर का लाल मैं होली खेलती
चैत जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर का लाल मैं गणगौर पूजती
बैसाख जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर का लाल मैं पंखा मंगावती
जेठ जे मास सुहावणा सुआ रे।
जै घर होता हर लाल मैं जेठड़ा मनावती
बारहए महीना होलिया सुआ रे।
तोडूं मरोडूं तेरा पींजड़ा जल में दूंगी बगाय
तेरी सेवा ना करूं सुआ रे।
म्हारी तो सेवा वै करै राधा ए जो हर आवैगा आज
जेाडूं संगोडूं तेरा पींजड़ा सुआ रे।
और चुगाऊं पीली दाल तेरी सेवा मैं करूं