भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सातमोॅ अध्याय / श्री दुर्गा चरितायण / कणीक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(यै अध्याय में ऋषि फेनू राजा केॅ चड आरो मुण्ड के वध-कथा सुनावै छै, जे देवी माहात्म्य में चण्ड-मुण्ड वध कही केॅ छै।)

शुम्भोॅ के आज्ञां मानि केॅ,
चतुरंङिनी सेना सहित।
गिरिराज दिश प्रस्थान कैलकै,
चण्ड-मुण्डेॅ शुम्भें हित।

जहाँ सिंह लै असवारि देवी मुस्कुराहट मुख भरी,
शुम्भोॅ के आगू के कदम केॅ व्यग्रता सें रूख करी।
देवी केॅ देखी दैत्य सेनां टूट पड़लै जल्द ही
तानीं धनुख लै खड़ग हाथें दौड़ि पड़लै जल्द हीं।
देखी केॅ करतब दैत्य सेनां देवी कोप में सन गेली,
मुँहमां ठो कारोॅ भौंह टेढ़ोॅ काली रूप प्रगट भेली।
खट्वाण लै हौ भयंकरा नर-मुण्ड के माला पिन्हीं,
तन-माँस सुखलोॅ, हट्टी ढ़ांचा साड़ि बछछाला पिन्हीं।
मुँहमां विशाल जिभभा लपलप अति भयावनी सी रूप लगै,
अँखिया धँसलोॅ गर्जन भीषण, सब दिशा गर्जनोॅ से जागै।
वधि दैत्य-सैन्य देवी काली भक्षण में लागीगेली सतत,
घंटा सहितें कुंजर योद्धा महावतो भी निडलै भेली रत्त।
रथ, अश्व, सारथि आरो रथी, मुँह डालि चबैनें सभ गेली,
असुरा संहारै में देवी दँतबा बीचों लै कुचलली।
है देखि चण्ड अति कुपित बनीं काली के नगीचें आबी केॅ,
फिन मुण्डें भी वाणोॅ बरखा करि, देवी वाण से छाबी दैॅ।
अैसनोॅ तखनीं लागेॅ लगलै, सुर्योॅ के बदलीं ग्रसि लेलकै,
हौ वाण सब्भे जे असुरा के देवी नें मुँहमा समैलकै।

फिन अति भंयकर गर्जन करि, अट्टहास काली के जे होलै,
वदनां विकंराला मुँहमा केरॉे दाँत प्रभा ठो चमक गेलै।
बड़का ठो लै तलवार काली, चण्डोॅ दिश फेनू दौड़ि गेली,
केशवा ओकरोॅ कस्सी पकड़ी तलवार से मथवा काटि लेली।
चण्डोॅ के मरथैं मुण्डोॅ भी काली दिश धनुवाँ लै दौड़ले,
देवी के खड्ग प्रहारोॅ सें, वोहो भी धरा घोलट गेलै।
दोन्हूं के मरथैं शेष सेनां भयत्रस्त होलोॅ तुरते भागलै,
फिन काली दोन्हूं के सिर लै चण्डिका नगीचें जा मिललै।
करि अट्टहास, काली बोलली देवी! हैसिर तोरा भेंट करौं,
अब युद्ध यज्ञ में खुद उतरी निशुम्भ-शुम्भ के वध तों कर्हौ।
ऋषि बोललै राजन! सिर देखी, चण्डी काली के मान करै,
काली सें बोलली यै लेली ”चामुण्डा“ नाम जगतें उच्चरै॥27॥

(यै अध्याय में उवाच 2 आरो श्लोक 25 छै।)