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सात सुरों में बोल… मेरे मन की पीर !/ हरीश भादानी

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सात सुरों में बोल
मेरे मन की पीर !
हर पतझर के देश में,
जा बासंती वेश में
सिणगारी सी डोल,
मेरे मन की पीर !
सात सुरों में बोल
मेरे मन की पीर !
जा शोलों के राज में,
बदरी के अंदाज में,
रिमझिम घूंघट खोल,
मेरे मन की पीर !
सात सुरों में बोल
मेरे मन की पीर !
अपनी-अपनी राह पर
मन भाती हर चाह पर
विरह-मिलन मत तोल
मेरे मन की पीर !
सात सुरों में बोल
मेरे मन की पीर !
साँसों की सीमाओं पर
मुस्कानों पर, आहों पर
जीवन का रस घोल,
मेरे मन की पीर !
सात सुरों में बोल
मेरे मन की पीर !