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साथी, कवि नयनों का पानी- / हरिवंशराय बच्चन

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साथी, कवि नयनों का पानी-

चढ जाए मंदिर प्रतिमा पर,
यी दे मस्जिद की गागर भर,
या धोए वह रक्त सना है जिससे जग का आहत प्राणी?
साथी, कवि नयनों का पानी-

लिखे कथाएँ राज-काज की,
या परिवर्तित जन समाज की,
या मानवता के विषाद की लिखे अनादि-अनंत कहानी?
साथी, कवि नयनों का पानी-

’कल-कल’ करे सरित निर्झर में,
या मुखरित हो सिन्धु लहर में,
युग वाणी बोले या बोले वह, जो है युग-युग की वाणी?
साथी, कवि नयनों का पानी-