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साथी जिसे बनाया हमने राहों पर आने से पहले / रंजना वर्मा

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साथी जिसे बनाया हमने राहों पर आने से पहले।
लूट लिया उस रहबर ने ही मंजिल को पाने से पहले॥

झेले कितने भँवर लहर को गिन-गिन सारी उमर बहे
छूट गई पतवार हाथ से साहिल तक जाने से पहले॥

मधुबाला ने जाम भरा था मेरा चाहत की मय से
टूट गया शीशा पर मेरे अधरों तक आने से पहले॥

किसने किसकी बाट निहारी किसने किसको प्यार किया
साथ छोड़ जाते हैं सारे अपना घर आने से पहले॥

कितनी आकुल साँसें मन की प्यास पुकारा करती घन को
छा कर स्वयं बिखर जाते हैं जीवन बरसाने से पहले॥