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साथ चलने का संकल्प है / सोनरूपा विशाल
Kavita Kosh से
रेल की पटरियों की तरह, साथ चलने का संकल्प है।
इक कहानी है सन्दर्भ बिन, भाग्य ने ये रचा शिल्प है।
कोई ऐसा इरादा नहीं फ़र्ज़ सम्बन्ध में हम गिनें
जग की नियमावली का भी तो प्रेम में मान हम तुम रखें
शुद्धतम प्रेम का एक ये ख़ूबसूरत सा आकल्प है।
रेल की पटरियों की तरह, साथ चलने का संकल्प है।
साथ होकर मिले ही नहीं हम नदी के किनारे हुए
मन से मन की पड़ीं भाँवरें तन भले रह गए अनछुए
आसमां से विशद प्यार में ये कमी है मगर अल्प है ।
रेल की पटरियों की तरह, साथ चलने का संकल्प है।