भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साथ छोड़ा सूर्य ने है धूप का चलते हुए / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साथ छोड़ा सूर्य ने है धूप को छलते हुए ।
रोशनी देता दिया है रात भर जलते हुए।।

जिंदगी दे कर सँवारी प्यार से माँ बाप ने
देखते रहना न उनके अश्क़ तुम ढलते हुए।।

हर मुसीबत को पहाड़ो सी रहा जो झेलता
दर्दे दिल पा कर दिखा हिमखंड सा गलते हुए।।

हैं बड़े खुदगर्ज जिनको कागजी फ़ितरत मिली
कोयलों के नीड़ में बच्चे दिखे पलते हुए।।

तोड़ दिल वो सो गये जैसे नहीं कुछ जानते
देखने आये तमाशा आँख फिर मलते हुए।।

दिख रही संतान थकती अब न सेवा भाव है
पर थके कब हाथ माँ के हैं व्यजन झलते हुए।।

हारना हिम्मत कभी मत बैठ जाना पस्त हो
पास आती मंजिलें हैं राह पर चलते हुए।।