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साथ तन्हाइयों के रहते हैं / देवी नांगरानी

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साथ तन्हाइयों के रहते हैं
ऐ जहाँ वालो हम मज़े से हैं

आँधियों से न अब तो डरते हैं
जब से तूफान घर को घेरे हैं

जब निकलते हैं अपने घर से वो
देखने वाले भी संभलते हैं

फूल तो फूल हैं चलो छोड़ो
फूल लफ्ज़ों के दिल में चुभते हैं

ग़म तो हर वक्त साथ-साथ रहे
ग़म कहीं अपना रुख़ बदलते हैं

आईना बनके जब भी वो आए
हम उन्हें देख कर संवरते हैं

हम भला किस तरह से भटकेंगे
हम तो रौशन ज़मीर रखते हैं

यादें-माज़ी फरेब हैं ‘देवी’
हम तो सच्ची डगर पे चलते हैं