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साथ तुम्हारा गम रहता है / विशाल समर्पित
Kavita Kosh से
किसको हाल सुनाऊँ अपना
दृग का मौसम नम रहता है
मुझे अकेला मत समझो तुम
साथ तुम्हारा गम रहता है
इक दिन नहीं मिले हम तुम तो
लगा की सदियाँ बीत गई हैं
बिना बात के बरस-बरस कर
दोनों अखियाँ रीत गई हैं
अखियाँ जिनकी आदी थीं वह
अब अखियों मे कम रहता है
मुझे अकेला मत समझो तुम
साथ तुम्हारा गम रहता है
पंचामृत की चाह किसे है
सूखा मरुथल बस जल चाहे
कुछ और मिले न मिले मुझको
पर प्रणय प्रश्न का हल मिल जाए
तुम मुझे मिलोगी किसी दिवस
अब तक मन को भ्रम रहता है
मुझे अकेला मत समझो तुम
साथ तुम्हारा गम रहता है