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साथ मुझको तुम्हारा मिले न मिले / सलीम रज़ा रीवा
Kavita Kosh से
हमसफ़र तुम सा प्यारा मिले न मिले
साथ मुझको तुम्हारा मिले न मिले
इश्क़ का कर दे इज़हार तन्हा है वो
ऐसा मौक़ा दुबारा मिले न मिले
साँस बनकर रहो धड़कनों में मेरी
मुझको जन्नत ख़ुदारा मिले न मिले
जी ले खुशिओं की पतवार है हाँथ में
बहरे ग़म में किनारा मिले न मिले
मां की शफ़क़त जहाँ में बड़ी चीज़ है
ये मोहब्बत की धारा मिले न मिले
वो भी होते तो आता मज़ा और भी
फिर सुहाना नज़ारा मिले न मिले
आज जी भर के दीदार कर ले "रज़ा"
चाँद का ये नज़ारा मिले न मिले