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साथ रहते इतनी मुद्दत हो गई / 'हफ़ीज़' जौनपुरी

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साथ रहते इतनी मुद्दत हो गई
दर्द को दिल से मोहब्बत हो गई

क्या जवानी जल्द रूख़्सत हो गई
इक छलावा थी कि चम्पत हो गई

दिल की गाहक अच्छी सूरत हो गई
आँख मिलते ही मोहब्बत हो गई

फ़ातिहा पढ़ने वो आए आज क्या
ठोकरों की नज़्र तुर्बत हो गई

लाख बीमारी है इक परहेज़-ए-मय
जान जोखों तर्क-ए-आदत हो गई

तफ़रका डाला फ़लक ने बारहा
दो दिलों में जब मोहब्बत हो गई

वो गिला सुन कर हुए यूँ मुनफ़इल
आएद अपने सर शिकायत हो गई

दोस्ती क्या उस तलाव्वुन-तबा की
चार दिन साहब सलामत हो गई

वाह रे आलम कमाल-ए-इश्क़ का
मेरी उन की एक सूरत हो गई

उन के जाते ही हुई काया पलट
ख़म मर्सरत यास हसरत हो गई

पी के यूँ तुम कब बहकते थे ‘हफीज’
रात क्या बे-लुत्फ सोहबत हो गई