भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साथ रहते हैं नहीं अब खास अपने / अवधेश्वर प्रसाद सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साथ रहते हैं नहीं अब खास अपने।
खो चुके हैं आपसी विश्वास अपने।।

दोष किसका है बड़ा कहना है मुश्किल।
ज़िंदगी उलझी हुई है पास अपने।।

अब कहाँ रिश्ते निभाते लोग सब हैं।
बन रहे हैं बदनुमा इतिहास अपने।।

आप सब आराम से बैठे रहेंगे।
कल करेंगे लोग सब उपहास अपने।।

हम बहर पर ही सदा गढ़ते ग़ज़ल हैं।
प्यार दिल में रख बुझाते प्यास अपने।।