भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साथ सुखों के बैठा हूँ / राम नाथ बेख़बर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साथ सुखों के बैठा हूँ
फिर भी दुख का हिस्सा हूँ

लम्हा - लम्हा टूटा हूँ
मैं मुफ़लिस का सपना हूँ

कौन करेगा पूरा अब
एक अधूरा क़िस्सा हूँ

आँखों में जो ठहरा है
आँसू का वो क़तरा हूँ

कौन मुझे अब खोलेगा
ज़ंग लगा इक ताला हूँ

घर हो जैसे बेवा का
इतना उजड़ा - उजड़ा हूँ