Last modified on 31 जुलाई 2023, at 00:59

साथ सुखों के बैठा हूँ / राम नाथ बेख़बर

साथ सुखों के बैठा हूँ
फिर भी दुख का हिस्सा हूँ

लम्हा - लम्हा टूटा हूँ
मैं मुफ़लिस का सपना हूँ

कौन करेगा पूरा अब
एक अधूरा क़िस्सा हूँ

आँखों में जो ठहरा है
आँसू का वो क़तरा हूँ

कौन मुझे अब खोलेगा
ज़ंग लगा इक ताला हूँ

घर हो जैसे बेवा का
इतना उजड़ा - उजड़ा हूँ