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साथ हैं फिर / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र
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दिन पहाड़ी रास्तों के
और जंगल की हवाएँ
साथ हैं फिर
दूर नीचे कहीं छूटे
शोरगुल पिछले शहर के
खुशबुओं से बात करते
घने साये दोपहर के
धूप की पगडंडियाँ
नीलाभ सपनों की ऋचाएँ
साथ हैं फिर
नदी-झरने संग
उनके तले की चट्टान
हँसती बह रही है
दूर ऊपर कहीं
बरफीीली शिलाएँ कह रही हैं
और ऊपर आओ- देखो
ऋषि तपोवन- अप्सराएँ
साथ हैं फिर