Last modified on 25 मई 2011, at 23:19

साधना है प्रेम का राग... / प्रतिभा कटियार

जब देखती हूँ तुम्हारी ओर
तब दरअसल
मैं देख रही होती हूँ अपने उस दुःख की ओर
जो तुममें कहीं पनाह पाना चाहता है ।

जब बढ़ाती हूँ तुम्हारी ओर अपना हाथ
तब थाम लेना चाहती हूँ
जीवन की उस आख़िरी उम्मीद को
जो तुममे से होकर आती है ।

जब टिकाती हूँ अपना सर
तुम्हारे कन्धों पर
तब असल में पाती हूँ निजात
सदियों की थकन से
तुम्हें प्यार करना असल में
ढूँढ़ना है ख़ुद को इस सृष्टि में..
बोना है धरती पर प्रेम के बीज
और साधना है प्रेम का राग...