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साधारणीकरण / निज़ार क़ब्बानी
Kavita Kosh से
जब मैं होता हूँ तुम्हारे संग
तो अनुभव करता हूँ
कि भूल गया हूँ कविताएँ लिखना ।
जब मैं सोचता हूँ तुम्हारे सौन्दर्य के बारे में
तो हाँफने लगता हूँ साँस लेने के लिए ।
मेरी भाषा मुझे धोखा देने लगती है
और ग़ायब हो जाती है पूरी शब्दावली ।
मुझे इस ऊहापोह से उबारो
अपने सौन्दर्य में करो थोड़ी कतर-ब्योंत
तनिक कम ख़ूबसूरत बनो
ताकि मैं फिर से हासिल कर सकूँ अपनी प्रेरणा ।
एक स्त्री बनो
मेकअप करने और परफ़्यूम लगाने वाली
एक ऐसी स्त्री बनो जो बच्चों को देती है जन्म
तुम करो यह सब कुछ
ताकि फिर से शुरू हो सके मेरा लिखना ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह