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साधि लैहैं जोग के जटिल जे बिधान ऊधौ / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
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साधि लैहैं जोग के जटिल जे बिधान ऊधौ
बाँधि लैहैं लंकनि लपेटि मृगछाला हू ।
कहै रतनाकर सु मेलि लैहैं छार अंग
झेलि लैहैं ललकि घनेरे घाम पाला हू ॥
तुम तौ कही औ' अनकही कहि लीनी सबै
अब जौ कहौ तो कहै कचु ब्रज-बाला हू ।
ब्रह्म मिलिबै तै कहा मिलिबै बतावौ हमें
ताकौ फल जब लौं मिलै ना नन्दलाला हू ॥62॥