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साधु और नीच / रामनरेश त्रिपाठी
Kavita Kosh से
यदि सज्जन दीन दुखी बन जाँय
नहीं घटता पर गौरव है।
मणि कीचड़ में गिर जाय परंतु
निरादर हो कब संभव है॥
खल मान नहीं लहता, उसके
यदि पास महाधन वैभव है।
उड़ती नभ में रज वायु चढ़ी,
पर मान मिला उसको कब है!