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साधू लेटा ऑंखें-मूँदे / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
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कैसा अचरज -
साधू लेटा ऑंखें-मूँदे राजघाट में
बनी समाधि संगमरमर की
उसमें वह रहता है सोया
विश्वग्राम का हल्ला व्यापा -
उसमे ही उसका सत खोया
लगा हुआ
उसका बुत भी है बड़ी लाट में
रक्षा करने को समाधि की
सैनिक चुस्त-दुरुस्त खड़े हैं
वचन आमजन के थे उसके
राजभवन में गये जड़े हैं
चश्मा उसका
बिका रात कल विश्वहाट में
उसकी बोली-बानी पढ़कर
दूर देश से दर्शक आये
देखे उनने उसके ऊपर
फैले विश्वग्राम के साये
चेले उसके
रोज़ रच रहे छल कपाट में