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साधो, घर में घुसे कसाई / महेंद्र नेह
Kavita Kosh से
साधो, घर में घुसे कसाई ।
बोटी-बोटी काट हमारी हमरे हाथ थमाई ।।
छीने खेत, जिनावर छीने, छीनी सकल कमाई ।
भँवरों की गुनगुन-रस छीना, तितली पंख कटाई ।।
मधु छीना, छत्तों को काटा, नीचे आग लगाई ।
इतना धुँआ भरा आँखों में, देता नहीं दिखाई ।।
नदियाँ गँदली, पोखर गँदले, गँदले ताल-तलाई ।
पानी बिके दूध से महँगा, कैसी रीत चलाई ।।
नए झुनझुनों की सौगातें, घर-घर में बँटवाई ।
इतनी गहरी मार समय की, देती नहीं सुनाई ।।
किससे हम फरियाद करें, अब किससे करें दुहाई ।
नंगों की महफ़िल में, नंगे प्रभुओं की प्रभुताई ।।