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साधो, यहै तरक्की आय / सुशील सिद्धार्थ
Kavita Kosh से
साधो, यहै तरक्की आय।
कुछु के मुंह मा सोने क सिक्का कुछु के मुंह मा हाय॥
ई बिकास की राह प चलिकै देसु कहां तक जाय।
ख्यातन केरी फसिलि छांड़िकै सब कुछु महंग बिकाय॥
कर्जु लेय फिरि कसै सिकंजा देति सबै रगदाय।
हारि क होरी आपनि देंही फांसि प दे लटकाय॥
प्रेमचंद होती तौ लिखती भांति भांति समुझाय।
हब को द्याखै आपनि ढपली ठेलुहा रहे बजाय॥
हकु न मिलै भिच्छा मांगे ते गवा समझि मा आय।
उइकी बढ़िकै नट्टी पकरौ जो तुमते खउख्याय॥