भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साधो सपन भये उइ बोल / बोली बानी / जगदीश पीयूष
Kavita Kosh से
साधो सपन भये उइ बोल
रहै जहां बिनु दामन मिसिरी कउनौ नाप न तोल
अब तौ ब्वालैं अइसी बोली जेहिमा पोलमपोल
बड़े छ्वाट सब पीटि रहे हैं झक्कड़ झइयम ढोल
बखतु परे पै लोग करति हैं केतना टालमटोल
चेहरन उप्पर जड़े मुखौटा कसा खाल पर खोल
तिरबाचुक कै हवा निकसि गै हर किरिया मा झोल
परखैया होई तौ जानी प्यारी प्रीति कै मोल
या दुनिया धोखे कै पुतरा सब कुछु है धंधोल
उड़ी चिरैया बगिया बचिगै रहिगै धरा अडोल