भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सापेख/ कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
टूटग्यो
साता तारां में स्यूं
एक तार,
सितार
बनग्यो बलीतो
खुट्ग्यो
पांच तत में स्यूं
एक तत,
सत
हुग्यो अलीतो !