साबित ये करूँगा के हूँ या नहीं हूँ मैं / मनमोहन 'तल्ख़'
साबित ये करूँगा के हूँ या नहीं हूँ मैं
वहम ओ यक़ीं का कोई दो-राहा नहीं हूँ मैं
सुस्ता रहा हूँ राह-गुज़र से ज़रा परे
क्या मुझ को तक रहे हो तमाशा नहीं हूँ मैं
पहला क़दम कहीं मेरे इंकार का न हो
होना था जिस जगह मुझे उस जा नहीं हूँ मैं
बैसाखियों पे चलते बनो मुँह न तुम लगो
कहता हूँ फिर के आदमी अच्छा नहीं हूँ मैं
हूँ आपे दाँए बाँए भी मैं ही ये सोच लो
तुम हो तो मेरी ताक में तनहा नहीं हूँ मैं
समझे न कोई सरसरी या तज़्करा मुझे
भर-पूर माजरा हूँ हवाला नहीं हूँ मैं
हैरत-कदा हूँ वो के जिसे ला-मकाँ कहें
तुम क्या समझ रहे हो मुझे क्या नहीं हूँ मैं
ये मुझ को सोचना है के अगला क़दम हो क्या
यूँ भी किसी की बात में आया नहीं हूँ मैं
कहता है ‘तल्ख़’ घर से निकलना करूँगा बंद
कोई बचा है जिसे से के उलझा नहीं हूँ मैं