हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
सामण का महीणा मेघा रिमझिम रिमझिम बरसै
मन नै समझाऊं तो बी बैरी जोबन तरसै
तीजां के दिनां की तो थी आस बड़ी भारी
ऐसे में भी न आए मैं पड़ी दुखां की मारी
सामण का महीना मेघा रिमझिम रिमझिम बरसै
मन नै समझाऊं तो बी बैरी जोबन तरसै