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सामना / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
पत्थर-पत्थर
जितना पटका
उतना उभरा !
पत्थर-पत्थर
जितना कुचला
उतना उछला !
कीचड़ - कीचड़
जितना धोया
उतना सुथरा !
कालिख - कालिख
जितना साना
जितना पोता
उतना निखरा !
असली सोना
बन कर निखरा !
ज़ंजीरों से
तन को जब - जब
कस कर बाँधा
खुल कर बिखरा
उत्तर - दक्षिण
पूरब - पश्चिम
बह - बह बिखरा !
भारी भरकम
चंचल पारा
बन कर लहरा !
हर खतरे से
जम कर खेला,
वार तुम्हारा
बढ़ कर झेला !