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सामर्थ्य-भर / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
जीवन —
मात्रा एक यात्रा है,
अनन्त राह पर
अन्तहीन यात्रा है !
विश्रांति-हेतु
क्षण-भर रुकना
आगे बढ़ने का
केवल उपक्रम है।
मंज़िल दूर,
बहुत दूर,
समय कम,
बेहद कम है !