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सामला मल्लैह, तुम इस धरती का नमक हो / राजा पुनियानी

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ऋण न चुका पाने की परिस्थिति में आन्ध्र में हर साल आत्महत्या करनेवाले 'सामला मल्लैह' किसानों के नाम

सामला मल्लैह, तुम इस धरती के बड़े बेटे हो ।
तुम्हारी अस्तित्व की पीठ रगड़ कर वे जला लेते हैं
अपने हिस्से की आग ।
वे कह रहे हैं बड़े गर्व के साथ
अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन में

देश में विकास की घटना घट रही है ।
तुम्हारा ही हड्डी बिछा कर
तुम्हारा ही ख़ून पोत कर
उनके बसाए हुए शहर में उनका देश बसता है ।
देख लो
देख के पहचान लो इन चेहरों को ।
इन चेहरों के भीतर के अमेरिकाओं को
व इन चेहरों के भीतर के कसाइयों को ।
कि चेहरे केवल मुखौटे होते हैं
और मुखौटे के फ़ोटो छपेंगे कल के अख़बारों के मुखपृष्ठों पर
जब तुम्हारी आत्महत्या की ख़बर
सूअर की पूँछ की तरह दिखाई देगी अख़बार की पूँछ में ।
"प्रधानमन्त्री ने गहरा शोक प्रकट किया है" --
कहेगी कन्फ़्युज्ड समाचार-वाचिका ।
इतिहास के किनारे धकेल के तुम्हें
वे तुम्हारी बदनामी के झूठे दस्तावेज़ छापेंगे ।

इनसान कायर नहीं होते
कायर तो होता है समय
इसीलिए समय का गलपट्टा पकड़ कर पूछना तुम सामला --
तुम्हारी छापामार भूख का
अपंग पंचायत का
और लोभी महाजन
इनमें से किस-किस का कितना हिस्सा बनता है
तुम्हारा मृत्यु की जीवन्त उपत्यका में ।

सामला मल्लैह, इन शासकों के लोभ में झूलते हुए
गणतांत्रिक अधिकार को उखेड़ फेंको
उखाड़ दो और एक रास्ते की खुदाई करो
जहाँ उनका विकास नहीं, तुम्हारे आदमी चल पाएँ ।
वे केवल देश 'चलाना' जानते हैं
देश 'बनाना' नहीं ।
इस बार आत्महत्या के अवसर दे दिए जाएँ
देश चलानेवाले सरगनाओं को ।
सामला मल्लैह, तुम इस धरती के बड़े बेटे हो ।

तुम्हारी विधवा स्त्री जब ख़ाली माँग किसी आग से भरती हो
तुम्हारे अनाथ बच्चे जब जीवन के कच्चे हिसाब सीखने लगेंगे
बचे-खुचे एक टुकड़े तुम्हारे खलिहान को जब प्यास सताती है
तब तुम्हारे ऋण की आँख खुलती हैं सामला मल्लैह
तब टूट जाते हैं पंख ऋण के ।
सामला मल्लैह, तुम इस धरती के बड़े बेटे हो ।
सामला मल्लैह, तुम इस धरती का नमक हो ।

मूल नेपाली से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा