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सामान्यजन / मुसाफ़िर बैठा

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सामान्यजन की एक पहचान है मेरे पास

यदि हम अनचटके में बदल लें
अपना घर बार ठौर ठिकाना फोन नम्बर आदि
तो उन्हें ढूंढ़ना पड़ता है
हमें हमारा घर हमारा ठौर
अगर वे हमसे संपर्क की चाह करें

सामान्यजन से हम नहीं जुड़े होते इतने गहरे
कि हमारे संपर्कों में
उपस्थित न हो कोई टूट इस हद तक
कि हमारे ठौर के नयेपन का लेखा
अनचाहे ही उन्हें सुलभ हो जाए

यहां बढ़ा होता है बेहद मतलब का हाथ
और इस बेहदी में रिश्तों की चैहद्दी
सिर्फ और सिर्फ हाट बिकाय की होती है
और तिजारती खुदगर्जी की बाड़ी में
उपजा होती है इकहरा छलराग
सामान्यजन के पांव हमारे घर
बहुधा उस वक्त पड़ते हैं
जब सुकून के एकाकी क्षणों में
हमारे रहने का समय होता है
जबकि ऐन वक्त वे अपने लिए
लाभ लोेभ के कुछ और कतरे
बटोरने की जुगत में लगे होते हैं
और हमसे मन मुराद पा लेने का अपनी
किंचित उन्हें इमकान होता है

सामान्यजन हमसे प्रायः
हमारा सुख सुकून मांगते हैं
और चेेते अनचेते
हमारे लिए दुख दर्द टांगते हैं ।
             
2006