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सारथी / राजूराम बिजारणियां
Kavita Kosh से
आखर-आखर रच देवै
लोक-परलोक बिचाळै
बीजी दुनियां।
उभो कर देवै
हुवती-अणहुवती सोच रो
झीणों पड़दो
आपणै बिचाळै।
सूरज पीळो-पट्ट
चांद धोळो-धप्प
मुळकता मूंडा
गोरा-गट्ट बण
नाचै-गावै
मोद मनावै
रथ भजावै
सबदां रै पाण
जिणरो
सारथी बणै कवि
सिखावै दांव
जूण जुद्ध रा
करावै भेद
ओपरै-परायै में
निकाळै नितार
झूठ-सांच रो
सांचाणी-
पड़तख खड्यो कलमधर
कोनी भगवान
पण कीं तो बेसी है
नाजोगै माणस सूं.!