भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सारथी / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थामें ऊंगली चंचल-मन की
राग-द्वेष मद छाए रे
दौड़ रहा वशीभूत हुआ मन
निश्चय-पथ भटकाए रे
फिर मन ही मन पछताए रे...

चेतनाएँ तू जागृत करले
वृत्ति अधीन हो जाए रे
दौड़ रहा था जो सरपट
वो इंद्रियाँ भी बंध जाए रे
चैतन्य-आत्म हो जाए रे....

व्यथित विचारों पर अंकुश कर
स्वयं लगाम लग जाए रे
उपयोगी बना, अनुकरण करे
नित समुचित मार्ग दिखाए रे
हर संभव भंवर बचाए रे....

इस पार्थिव रथ का सारथी बन
जब श्रीहरि हांक लगाए रे
जीवन-गीता का सार समझ
तू अर्जुन की गति पाए रे
यह ज्योतिर्मय तर जाए रे....