भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सारा आलम गोश बर आवाज़ है / मजाज़ लखनवी
Kavita Kosh से
सारा आलम गोश बर आवाज़ है|
आज किन हाथों में दिल का साज़ है|
हाँ ज़रा जुर्रत दिखा ऐ जज़्ब-ए-दिल,
हुस्न को पर्दे पे अपने नाज़ है|
कम्नशीं दिल की हक़ीक़त क्या कहूँ,
सोज़ में डुबा हुआ इक साज़ है|
आप की मख़्मूर आँखों की क़सम,
मेरी मैंख़्वारी अभी तक राज़ है|
हँस दिये वो मेरे रोने पर मगर,
उन के हँस देने में भी एक राज़ है|
छुप गये वो साज़-ए-हस्ती छेड़ कर,
अब तो बस आवाज़ ही आवाज़ है|
हुस्न को नाहक़ पशेमाँ कर दिया,
ऐ जुनूँ ये भी कोई अन्दाअज़ है|
सारी महफ़िल जिस पे झूम उठी 'मज़ाज़',
वो तो आवाज़-ए-शिकस्त-ए-साज़ है|