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सारा बदन हयात की ख़ुशबू से भर गया / आलोक श्रीवास्तव-१
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सारा बदन अजीब-सी ख़ुशबू से भर गया,
शायद तेरा ख़याल हदों से गुज़र गया।
किसका ये रंग-रूप झलकता है जिस्म से,
ये कौन है जो मेरी रगों में बिखर गया।
हम लोग मिल रहे हैं अना अपनी छोड़ कर,
अब सोचना ही क्या के मेरा मैं किधर गया।
लहजे के इस ख़ुलुस को हम छोड़ते कहाँ,
अच्छा हुआ ये ख़ुद ही लहू में उतर गया।
मंज़िल मुझे मिली तो सबब साफ़-साफ़ है,
आईना सामने था मेरे मैं जिधर गया।