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सारिपुत्त की स्वीकारोक्ति / राजकिशोर राजन

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तथागत ! मैंने नहीं देखा विस्तृत नभ को
देखा पृथ्वी को
और हो गया पृथ्वी ही

देखा जल की ओर
और हो गया जल ही

गुरूवर ! देखा अग्नि को प्रज्जवलित
और हो गया अग्नि ही

देखा मन्द-मन्द बहते वायु को
और हो गया वायु ही

नहीं देखा कभी अपनी ओर
द्रष्टा बन अपनी ही काया को

पृथ्वी की भाँति
मुझे ज्ञात, मात्र स्वीकार
प्रवाहमय मैं जल की भाँति
अनासक्त भाव से
ग्रहण किया संसार

शुभ-अशभ, असुन्दर-सुन्दर सभी
हो जाते मुझमें निमग्न
दुर्गन्ध हो या सुगन्ध सबको ले चलता
वायु समान

तथागत, मैं हूँ ही नहीं
और सभी में
मैं विद्यमान
जैसी आपकी देशना
जैसा आपका ज्ञान

सारिपुत्र<ref>सारिपुत्त - बुद्ध के प्रमुख शिष्य</ref> की यह स्वीकारोक्ति
एक न एक दिन हो
हमारी स्वीकारोक्ति ।

शब्दार्थ
<references/>