Last modified on 27 जून 2018, at 14:26

सारी उम्र गवानी है / उत्कर्ष अग्निहोत्री

सारी उम्र गवानी है।
इक तसवीर बनानी है।

खूब सँभलकर चलना भी,
बचपन है नादानी है।

मूँह मोड़े थी किसमत पर,
हार न उसने मानी है।

दृश्टि नयी होती है बस,
बाक़ी बात पुरानी है।

बाहर से गुलज़ार है वो,
भीतर इक वीरानी है।

जितना गहरा दरिया है,
उतना मीठा पानी है।