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सारी रात जली है बाती / विमल राजस्थानी

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स्नेह चुका, अधजली वर्तिका, रेखा-पथ बन रहा धुँए का
वायु चली, निशि ढली, दीप को थोड़ी देर और जलना है

इतराती, हँसती, बल खाती
सारी रात जली है बाती
लिखती रही शिखा सिर धुन-धुन
पढ़ते रहे पतंगे पाती
घिर-घिर आये घना अँधेरा, लगा रहा सन्नाटा फेरा
जीवन के आखर तिमिरावृत, लिपि भी तो कलना-छलना है

त्योहारों की लगी हाट है
फूलों से पट रही बाट है
मंगल कलशों का जमघट है
हँसी-खुशी है, काट-छाँट है
फलित तपस्या, सफल साधना, वन का कण-कण सुरभि-रस-सना
अंतरिक्ष से देख रहा पतझर-यह पल भर का फलना है
यह अभिनय, यह पट परिवर्तन
छवि, छाया-प्रकाश का नर्तन
सुख-कल-कूजन, प्रियभुज-बंधन
विरह-व्यथा-स्वन-गुंजित जीवन
अंतिम साँस, विदा की वेला, यायावर ‘आलोक’ अकेला
नियम प्रकृति का अचल, अटल है, रवि को पश्चिम में ढलना है